क्या आप परशुराम जयंती पर निबंध (Essay on Parshuram Jayanti in Hindi) खोज रहे हैं? इस लेख में भगवान परशुराम जयंती पर निबंध बेहद सरल रूप से दिया गया है, साथ ही परशुराम जयंती क्या है, कब मनाया जाता है, कैसे मनाया जाता है ,परशुराम जयंती की कथा व महत्व, श्लोक, हवन मंत्र, तथा परशुराम जयंती पर 10 लाइन बेहद आकर्षक रूप से लिखा गया है।
प्रस्तावना (परशुराम जयंती पर निबंध Essay on Parshuram Jayanti in Hindi)
सनातन संस्कृति में वेदों पुराणों के माध्यम से जनजीवन को सदमार्ग पर ले जाने की परंपरा सदियों से चलती आई हैं।
हिंदू धर्म में अनेक महापुरुषों का उल्लेख मिलता है जो समाज में बदलाव लाने के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर देते हैं।
भगवान परशुराम भी उन देव आत्माओं में से एक हैं क्योंकि भगवान परशुराम को श्री हरि का छठवां अवतार माना जाता है।
दादा परशुराम में भगवान विष्णु और शंकर के गुणों का मिश्रण है क्योंकि परशुराम को भगवान शंकर में अगाध श्रद्धा थी और इसी कारण उनके आदेश पर उन्होंने पाप लिप्त क्षत्रियों का विनाश कर दिया था।
परशुराम जयंती के अवसर पर हिंदू समाज के लोग अपने आराध्य भगवान शंकर और भगवान विष्णु के गुणों वाले श्री परशुराम को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं।
परशुराम जयंती क्या है? What is Parshuram Jayanti in Hindi?
भगवान विष्णु के छठे अवतार श्री परशुराम के जन्मदिन को परशुराम जयंती कहा जाता है। हिंदू मान्यताओं में देवताओं और महापुरूषों की जयंती को विशेष माना जाता है।
हिंदू संस्कृति के अनुसार हर किसी के अंदर ईश्वर का ही अंश है अर्थात मृत्यु सिर्फ शरीर की होती है आत्मा अजर अमर अविनाशी है।
इसी प्रकार हर महापुरुष भले ही शरीर छोड़ दें लेकिन उनकी आत्मा और उनके गुण सदैव धरती पर मौजूद होते हैं जिनसे कभी भी सीख ली जा सकती है।
परशुराम जयंती की कथा Parshuram Jayanti katha in Hindi
परशुराम का जन्म त्रेता युग में हुआ था। उनके पिता का नाम ऋषि जमदग्नि और माता का नाम रेणुका था। काफी समय बीत जाने पर भी जब रेणुका को कोई संतान नहीं हुई तो ऋषि जमदग्नि ने पुत्रयेष्टि यज्ञ किया और उनके यज्ञ से प्रसन्न होकर भगवान इंद्र ने उन्हें उत्तम संतान प्राप्ति का आशीर्वाद दिया।
जन्म के बाद उनका नामकरण हुआ जिसमें उनका नाम रामभद्र रखा गया और प्रेम से उन्हें राम कहकर पुकारा जाने लगा। उनकी प्रारंभिक शिक्षा उनकी पहली गुरु यानी उनकी माता से प्राप्त हुई।
बचपन से ही वे कुशाग्र बुद्धि के बालक थे जो बाल्यावस्था में ही पशु, पक्षियों और प्रकृति की बोली समझने लगे थे।
बाल्यावस्था के बाद उन्होंने महर्षि विश्वामित्र और ऋचीक के आश्रम में रहकर शास्त्र तथा शस्त्र की शिक्षा प्राप्त की। महर्षि ऋचीक ने उन्हें अपना दिव्य धनुष दिया और महर्षि कश्यप ने उन्हें वैष्णव मंत्र का ज्ञान दिया।
भगवान परशुराम भगवान शंकर के परम भक्त थे इसलिए वे शिक्षा के बाद कैलाश पर्वत चले गए और उन्होंने कठोर तपस्या की।
उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने उन्हें विद्युदभी नामक परशु यानी कि फरसा प्रदान किया। इसलिए वे परशुराम कहलाए।
इसके बाद परशुराम वैदिक संस्कृति का प्रचार करने निकल गए। जहां उन्होंने पाया कि कुछ पापी लोग सज्जन लोगों को सता रहे हैं। इससे दुखी होकर उन्होंने ब्राह्मणों को शस्त्र धारण करने की व्यवस्था की।
भगवान परशुराम शस्त्र विद्या में भी पारंगत थे यहां तक कि वे कौरव कुल गुरु द्रोणाचार्य, भीष्म पितामह साथ ही दानवीर कर्ण के गुरु भी थे।
त्रेता युग में जब भगवान श्रीराम ने स्वयंवर में भगवान शंकर का धनुष तोड़ा तो उसकी गर्जना पूरे ब्रह्मांड में हुई जिसे सुनकर भगवान परशुराम मिथिला पहुंचे और टूटा हुआ धनुष देखकर क्रोधित हो गए जिसके बाद उनसे तथा श्री लक्ष्मण जी के बीच कहासुनी हो गई लेकिन बाद में जब उन्हें पता चला कि धनुष श्री राम ने तोड़ा है तो वे शांति से वहां से चले गए।
उनकी मातृ-पितृ भक्ति की परीक्षा लेने के लिए उनके पिता ने एक बार उनकी माता का वध करने का आदेश दे दिया।
आदेश मानकर उन्होंने अपनी माता रेणुका की गर्दन काट दी। उनके पितृ भक्ति से प्रसन्न होकर उनके पिता ने उनसे वरदान मांगने को कहा।
वरदान में उन्होंने अपनी माता को पुनर्जीवित करने का आग्रह किया और उनकी मातृ भक्ति से खुश होकर उनके पिता ने उनकी माता को पुनर्जीवित कर दिया और दोनों के आशीर्वाद से वे अपराजित रहे।
भगवान परशुराम गौ सेवक भी थे जिसका अंदाजा एक घटना से लगाया जा सकता है।
उस वक्त सहस्त्रबाहु कहे जाने वाले कार्तवीर्यार्जुन जिनके अंदर हजार भुजाओं जितनी शक्ति थी उनका वध कर उनके द्वारा हरण की गई कामधेनु गौ को छुड़ाकर आश्रम ले आए।
अपने पिता की हत्या का प्रतिशोध लेने के लिए भगवान परशुराम ने हैहयवंशी क्षत्रियों का 21 बार संपूर्ण नाश कर दिया था।
भगवान परशुराम को दानवीर भी कहा जाता है। हैहय वंशीय राजाओं को हराने के बाद उन्होंने अश्वमेध यज्ञ किया और जीती गई जमीन को दान कर दिया।
इसके बाद भी अपने सभी शस्त्रों को त्याग कर महेंद्र पर्वत पर तपस्या करने चले गए। ऐसा माना जाता है कि भगवान परशुराम आज भी अपनी तपस्या में लीन है।
परशुराम जयंती कब है? When is Parshuram Jayanti?
भगवान परशुराम का जन्म वैशाख माह के शुक्ल पक्ष कि तृतीया तिथि को हुआ था। इस वर्ष परशुराम जयंती अक्षय तृतीया यानी 13 मई को पड़ रहा है। किसी भी दृष्टि से यह तिथि बेहद ही मांगलिक है अर्थात शुभ मुहूर्त है।
परशुराम जयंती का महत्व Importance of Parshuram Jayanti in Hindi
हिंदू धर्म में परशुराम जयंती का बहुत ही महत्व है। परशुराम को भगवान शिव तथा भगवान विष्णु के गुणों वाला अवतार माना जाता है। बहुत सी जगहों पर उन्हें भगवान विष्णु का आवेशावतार कहा गया है।
रामायण से लेकर महाभारत तक भगवान परशुराम के शौर्य की गाथा अप्रतिम है। परशुराम जयंती यह हिंदू समाज के साथ विश्व के सभी धर्मों के लिए एक सीख है।
किस प्रकार समाज के लिए स्वयं का समर्पण किया जाता है यह परशुराम के जीवन में हर जगह दिखता है।
मानव समाज की सेवा के साथ बुराइयों के प्रति सजगता से खड़े रहने के गुण हर धर्म भगवान परशुराम से सीख सकता है।
भगवान परशुराम से हमारे हिंदू समाज के लोगों को यह अवश्य सीखना चाहिए कि इंसान अपने कर्म से ब्राह्मण, क्षत्रिय, शूद्र और वैश्य होता है ना की जन्म से।
भगवान परशुराम नें ब्राह्मण तथा क्षत्रिय दोनों संस्कारों का पालन किया।
कुछ अज्ञानी लोगों के कारण हिंदू समाज में छुआछूत तथा जाति वर्ग भेदभाव समाहित हो चुकी है। भगवान परशुराम के जीवन से हमें एकत्रित व संगठित रहने की सीख मिलती है।
भगवान परशुराम द्रोणाचार्य के गुरु थे लेकिन उन्होंने सूत पुत्र कहे जाने वाले अंगराज कर्ण को भी समान शिक्षा दी थी।
भगवान परशुराम को आदर्श मानकर आज हमें अपने धर्म तथा अपने समाज के लिए बुराइयों से लड़ने की प्रेरणा लेनी चाहिए।
परशुराम जयंती कैसे मनाते हैं? How is Parshuram Jayanti Celebrated?
भगवान परशुराम की जयंती पर लोग उनकी मूर्ति को स्थापित कर परशुराम कथा और अनुष्ठान करते हैं। परशुराम जयंती के दिन भगवान शंकर तथा भगवान विष्णु की भी पूजा होती है।
परशुराम जयंती को ब्राह्मण तथा क्षत्रिय वर्ग दोनों मनाते हैं। इसी दिन क्षत्रिय अपने हथियारों के रूप में फरसे की पूजा करते हैं।
छोटे बच्चों को रामायण तथा परशुराम की कथा सुनाई जाती है ताकि उनके अंदर साहस की जागृति हो। कई स्थानों पर भगवान परशुराम की झांकी निकाली जाती है तथा भंडारे की व्यवस्था भी की जाती है।
परशुराम जयंती के श्लोक Verse of Parshuram Jayanti in Hindi
अश्वत्थामा बलिव्र्यासो हनूमांश्च विभीषण।
कृप: परशुरामश्च सप्तैते चिरजीविन।।
सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्।
जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित।।
इस श्लोक के अनुसार अश्वत्थामा, राजा बलि, महर्षि वेदव्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, भगवान परशुराम तथा ऋषि मार्कण्डेय अमर हैं।
ऐसी मान्यता है कि भगवान परशुराम वर्तमान समय में भी कहीं तपस्या में लीन हैं।
परशुराम जयंती हवं मंत्र Parshuram Jayanti Havan Mantra in Hindi
‘ॐ ब्रह्मक्षत्राय विद्महे क्षत्रियान्ताय धीमहि तन्नो राम: प्रचोदयात्।।’
‘ॐ जामदग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि तन्नो परशुराम: प्रचोदयात्।।’
‘ॐ रां रां ॐ रां रां परशुहस्ताय नम:।।
परशुराम जयंती पर 10 वाक्य 10 Lines on Parshuram Jayanti in Hindi
- बाल्यावस्था में परशुराम के माता-पिता इन्हें राम कहकर पुकारते थे।
- ऐसी मान्यता है कि भगवान परशुराम वर्तमान समय में भी कहीं तपस्या में लीन हैं।
- भगवान शंकर ने परशुराम से कहा कि वह देवताओं की रक्षा करें। राम ने बिना किसी अस्त्र-शस्त्र के असुरों का नाश कर दिया।
- परशुराम दरअसल ‘परशु’ के रूप में शस्त्र और ‘राम’ के रूप में शास्त्र का प्रतीक हैं।
- परशुराम को अपने माता पिता की पाँचवी संतान थे उन्हें विष्णु के छठे अवतार आवेशा वतार के रूप में जाना जाता हैं।
- भगवान परशुराम ब्राह्मण तथा क्षत्रिय दोनों संस्कारों का पालन किया।
- परशुराम ऋषि जमादग्नि और रेणुका के पुत्र थे। ऋषि जमादग्नि सप्तऋषि में से एक ऋषि थे।
- भगवान परशुराम शस्त्र विद्या में भी पारंगत है यहां तक कि वे गौरव कुल गुरु द्रोणाचार्य, भीष्म पितामह साथ ही दानवीर कर्ण के गुरु थे।
- अपने पिता की हत्या का प्रतिशोध लेने के लिए भगवान परशुराम ने हैहयवंशी क्षत्रियों का 21 बार संपूर्ण नाश कर दिया था।
- परशुराम बचपन से ही वे कुशाग्र बुद्धि के बालक थे जो बाल्यावस्था में ही पशु पक्षियों और प्रकृति की बोली समझने लगे।
निष्कर्ष Conclusion
इस लेख में आपने भगवान परशुराम की जयंती पर निबंध (Essay on Parshuram Jayanti in Hindi) पढ़ा। आशा है यह लेख आपको सरल व जानकारियों से भरपूर लगा होगा अगर यह लेख आपको पसंद आया हो तो इसे शेयर जरूर करें।