शहीद भगत सिंह पर निबंध Essay on Shaheed Bhagat Singh in Hindi

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प्रस्तावना (शहीद भगत सिंह पर निबंध Essay on Shaheed Bhagat Singh in Hindi)

भारत  की पवित्र माटी पर एक बार नहीं बल्कि कई बार महान आत्माओं ने जन्म लिया है और भारत को महान बलिदानों की भूमि बनाया है। ऐसे ही महापुरुषों में से एक भारत माता के प्यारे शहीद भगत सिंह ने देश के लिए खुद को बलिदान कर दिया।

भगत सिंह का ताल्लुक एक किसान परिवार से था। उनके माता पिता आर्य समाज के विचारों से बहुत प्रभावित थे और उनकी राह पर ही चलते थे। जिसका असर बचपन से ही भगत सिंह पर होने लगा था।

उन्होंने अपनी शिक्षा छोटे से गांव से प्रारंभ की और प्रारंभिक शिक्षा पूरा करने के बाद उनका दाखिला लाहौर में स्थित एक कॉलेज में हुआ।

भगत सिंह के पिता तथा चाचा ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आंदोलन करते थे जिसके लिए जेल भी जाना पड़ा था। ऐसे देश भक्ति माहौल में जन्म लेने से बचपन से भगत सिंह के अंदर देश प्रेम की भावना जागने लगी थी।

जब भगत अपनी कॉलेज की पढ़ाई कर रहे थे उसी समय पूरे देश में ब्रिटिश सरकार के विरोध मैं कई उग्र आंदोलन चलाए जा रहे थे। हिंदुस्तान को अंग्रेजी हुकूमत से स्वतंत्र करने के लिए भगत सिंह ने अपना सब कुछ त्याग दिया और देश हित में चलाए जाने वाले संगठन में जुड़ गए।

देश के लिए लड़ते लड़ते भगत सिंह को आखिर में ब्रिटिश सरकार द्वारा फांसी पर चढ़ा दिया गया। आज भले ही भगतसिंह हमारे बीच नहीं है किंतु उनके विचार उनके द्वारा किए गए काम सदा ही हमारे दिल में जीवित रहेंगे।

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प्रारंभिक जीवन Early life of Bhagat Singh in Hindi

भगत सिंह का जन्म वर्तमान पाकिस्तान के पंजाब में लायलपुर जिला के बंगा गांव में 27 सितंबर 1907 में हुआ था। भगत सिंह के पिता का नाम सरदार किशन सिंह तथा माता का नाम विद्यावती कौन था।

 भगत सिंह के जन्म से पहले उनके पिता और दो चाचा अजीत सिंह और स्वर्ण सिंह को अंग्रेजो के खिलाफ प्रदर्शन करने के जुर्म में जेल में बंद कर दिया गया था। 

जिस समय भगत सिंह का जन्म हुआ उसी समय उनके पिता और चाचा भी जेल से रिहा हुए थे। उस समय भगत के घर में  जैसे खुशियों का लहर छा गया था।  भगत सिंह की दादी ने उनका नाम  भागो वाला रखा था जिसका अर्थ होता है भाग्यशाली। बाद में उन्हें भगत सिंह कहकर पुकारा जाने लगा।

देशभक्ति का  रंग शुरुआत से ही भगत सिंह पर पड़ने लगा था। ब्रिटिश सरकार की भारतीयों के प्रति किए जाने वाले क्रूर जुल्म से भगत सिंह इतने आहत थे कि उनके मन में अंग्रेजों के प्रति  घृणा की आग जलने लगी थी।

शिक्षा Education of Bhagat Singh in Hindi

भगत सिंह को स्कूल जाना बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता था। जब उनसे पूछा जाता था की वह क्यों स्कूल नहीं जाते हैं तो उनका एक ही जवाब होता था की ब्रिटिश हुकूमत में चलने वाली स्कूलों में पढ़ कर उनकी नौकरी करने से बेहतर है कि देश के स्वतंत्रता में खुद को तपा दिया जाए।

भगत सिंह की प्रारंभिक शिक्षा उनके ही गांव के एक प्राइमरी स्कूल से हुई। प्राथमिक शिक्षा पूर्ण होने के बाद उनका दाखिला लाहौर के डी.ए.वी  कॉलेज  में हुई थी।भगत सिंह ने अपनी कॉलेज की पढ़ाई करने के बाद नेशनल कॉलेज से  बीए. की पढ़ाई  की।

कॉलेज में पढ़ने के दौरान ही उनकी मित्रता बटुकेश्वर दत्त से हुई। इसके बाद भगत की मुलाकात कई अन्य नौजवानों से हुई जो देश के स्वतंत्रता में योगदान देना चाहते थे।।

क्रांतिकारी के रूप में उनके महान कार्य Bhagat Singh as A Revolutionary

13 अप्रैल 1999 को बैसाखी के दिन अमृतसर में स्थित स्वर्ण मंदिर के पास जलिया वाले बाग में रोलेट एक्ट के विरोध में एक सभा आयोजित की गई थी।

इस सभा के बारे में पता लगने के बाद अंग्रेजी ऑफिसर जनरल डायर ने अपने कुछ लोगों के साथ आकर बिना किसी चेतावनी के सभी लोगों पर गोलियों की बौछार कर दी। जिससे कई लोगों की जान गई और बहुत सारे लोग घायल भी हुए।

भगत सिंह को इस बात का पता लगा तो वह केवल 12 वर्ष के थे और अपने स्कूल से 12 मील दूर पैदल चलकर जलिया वाले बाग पहुंच गए। उन्होंने अपने ही लोगों की लाशों की ढेर देखी भगत सिंह अपने आंसू रोक नहीं पाए।

जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद भगत सिंह ने वहीं खड़े रहकर जमीन से कुछ लाभ उठाकर अपने सिर पर लगा लिया और कसम खाई कि वह देश को स्वतंत्रता दिला कर ही रहेंगे।

1 अगस्त 1920 में इस घटना के विरोध में गांधी जी तथा उनके साथियों द्वारा सविनय अवज्ञा आंदोलन चलाया गया जिसमें पश्चिमी देशों में बनने वाले हर एक चीज का बहिष्कार किया जाने लगा।

गांधी जी के विदेशी बहिष्कार विचारधारा से  भगत सिंह बहुत प्रभावित हुए। गांधीजी को आदर्श मानकर उनके समर्थन में आ गए थे।

4 फरवरी 1922 में अंग्रेजी हुकूमत के विरोध में स्वयंसेवकों द्वारा  उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले  के चौरी चौरा में जुलूस निकाला जा रहा था।

इसी दौरान पुलिस और स्वयंसेवकों के बीच हिंसक झड़प  हो गई और पुलिस वालों ने भीड़ पर गोलियां चला दी जिससे कुछ लोगों की जान चली गई और कई लोग घायल हो गए।

हिंसक हुई भीड़ ने यहां के पुलिस स्टेशन में आग लगा दिया जिससे 22 पुलिसकर्मियों की मौत हो गई। इस घटना के बाद गांधी जी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन को वापस ले लिया। आंदोलन वापस लेने के बाद भगत सिंह को गहरा सदमा पहुंचा और उन्होंने गांधी जी से मनभेद कर लिया।

भगत सिंह ने  लाहौर में अपने नेशनल कॉलेज की पढ़ाई पूरी किए बिना ही राष्ट्रवादी संगठनों में जुड़ गए और नौजवान भारत सभा की स्थापना की।  इसका उद्देश्य नौजवानों को इकट्ठा  करना था।

कुछ समय बाद भगत सिंह चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्व में स्थापित किए गए गदर दल से जुड़े जहां उनकी मुलाकात राम प्रसाद बिस्मिल तथा अन्य कई क्रांतिकारी से हुई।

काकोरी कांड को अंजाम देने के बाद राम प्रसाद बिस्मिल जैसे अपने ही 4 क्रांतिकारियों साथियों के फांसी के बाद देश प्रेम की भावना इनमें इतनी बढ़ गई कि भगत ने चंद्रशेखर आजाद के साथ उनकी पार्टी हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन से जुड़ गए और उसे हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन नया नाम दिया।

1928 में साइमन कमीशन के विरोध में लोगों का प्रदर्शन हुआ था जिसमें अंग्रेजी सैनिकों ने लोगों पर लाठीचार्ज किया जिसमें लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गई। बदला लेने के लिए 17 दिसंबर 1928 को भगत सिंह राजगुरु और जयगोपाल ने योजना बनाकर अंग्रेजी ऑफिसर सॉरडर्स की गोली मारकर हत्या कर दी।

8 अप्रैल 1929 को केंद्रीय असेंबली में अपने साथियों के साथ मिलकर बम फेंक दिया जिसके बाद इन्हें और उनके क्रांतिकारी साथियों को गिरफ्तार कर लिया गया।

निजी जीवन Personal Life of Bhagat Singh in Hindi

भगत सिंह का हृदय केवल और केवल भारत माता के लिए ही धड़कता था। एक बार इनके माता-पिता ने इनसे बिना राय लिए ही इनकी शादी करने का फैसला कर लिया जिसका पता लगने पर भगत सिंह ने बिना किसी को बताए घर से भाग गए और क्रांतिकारी संगठनों में जुड़ गए।

 भगत सिंह एक नास्तिक थे। उन्हें ईश्वर में बिल्कुल भी विश्वास और श्रद्धा नहीं था। जेल में रहने के दौरान ही भगत सिंह ने कई डायरिया और किताबें भी लिखी। 

उन्होंने अंग्रेजी भाषा में एक लेख भी लिखा था जिसका शीर्षक था ‘मैं नास्तिक क्यों हूं?’ जो उस समय कई लेखों में चर्चा का केंद्र बना हुआ था।  

मृत्यु Death of Bhagat Singh in Hindi

1929 में केंद्रीय असेंबली में  बम फेंकने से पहले ही इन्होंने सोच लिया था कि उन्हें जो भी सजा दी जाएगी उसे स्वीकार कर लेंगे। भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने मिलकर जानबूझकर ऐसी जगह बम फेंका था जहां पर लोग मौजूद न हो।

घटना के बाद अंग्रेजी ऑफिसर द्वारा सभी को गिरफ्तार कर लिया गया। 26 अगस्त 1930 को भारतीय दंड संहिता के आधार पर भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सजा सुना दी गई।

देश के कई भारतीय वकीलों ने इस सजा को टालने की कोशिश की किंतु ब्रिटिश सरकार द्वारा उन्हें नजरअंदाज कर दिया गया। 

 23 मार्च 1930 की शाम को उन तीनों अमर क्रांतिकारियों को फांसी दे दी गई। उस समय वहां पर जो भी भारतीय उपस्थित थे वे अपने आंसू रोक नहीं पाए। 

ऐसा बताया जाता है कि जब भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु फांसी के लिए ले जाए जा रहे थे तब वह एक ही गीत गुनगुना रहे थे –  मेरा रंग दे बसंती चोला..

फांसी होने के बाद अंग्रेजी सरकार  लोगों के उमड़ रहे भीड़ को देखकर इतना खौफ में आ गई थी के उन शहीदों के मृत शरीर के टुकड़े करके बोरी में भरकर फिरोजपुर ले जाकर मिट्टी के तेल से जला दिया।

जब लोगों को इस बात का पता लगा तो उसी दिशा में आगे बढ़ने लगे। लोगों की भीड़ आते देख अंग्रेजों ने बचे कुचे टुकड़ों को नदी में फेंक दिया और वहां से भाग गए।

जब गांव वाले पास आए तब उन्होंने उनके मृत शरीर के टुकड़ों को एकत्रित करके विधिवत दाह संस्कार किया। 

शहीद भगत सिंह पर 10 लाइन 10 lines on Shaheed Bhagat Singh in Hindi

  1. भगत सिंह का जन्म वर्तमान पाकिस्तान के पंजाब में लायलपुर  जिला के बंगा गांव में 27 सितंबर 1907 में हुआ था। 
  2. शहीद भगत सिंह के पिता का नाम सरदार किशन सिंह तथा माता का नाम विद्यावती कौन था।
  3. उनका पूरा परिवार दयानंद सरस्वती से प्रभावित होकर आर्य विचारधारा को अपने जीवन में अपना लिया था। 
  4.  भगत सिंह के जन्म से पहले उनके पिता और दो चाचा अजीत सिंह और स्वर्ण सिंह को अंग्रेजो के खिलाफ प्रदर्शन करने के जुर्म में जेल में बंद कर दिया गया था। 
  5. शहीद भगत सिंह की दादी ने उनका नाम  भागो वाला रखा था जिसका अर्थ होता है भाग्यशाली। बाद में उन्हें भगत सिंह कहकर पुकारा जाने लगा।
  6.  भगत सिंह की प्रारंभिक शिक्षा उनके ही गांव के एक प्राइमरी स्कूल से हुई। प्राथमिक शिक्षा पूर्ण होने के बाद उनका दाखिला लाहौर के डी.ए.वी  कॉलेज  में हुई थी।
  7. शहीद भगत सिंह को जलियांवाला बाग हत्याकांड बात का पता लगा तो वह केवल 12 वर्ष के थे और अपने स्कूल से 12 मील दूर पैदल चलकर जलिया वाले बाग पहुंच गए।
  8.  गांधी जी के विदेशी बहिष्कार विचारधारा से  भगत सिंह बहुत प्रभावित हुए। गांधीजी को आदर्श मानकर उनके समर्थन में आ गए थे।
  9. भगत ने चंद्रशेखर आजाद के साथ उनकी पार्टी हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन से जुड़ गए और उसे हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन नया नाम दिया।
  10. उन्होंने एक लेख भी लिखा था जिसका शीर्षक था ‘मैं नास्तिक क्यों हूं?’ जो उस समय कई लेखों में चर्चा का केंद्र बना हुआ था।  

निष्कर्ष conclusion

इस लेख में आपने भगत सिंह पर निबंध (Essay on Shaheed Bhagat Singh in Hindi) हिंदी में पढ़ा। आशा है यह लेख आपको पसंद आया होगा अगर यह लेख आपको अच्छा लगा हो तो इसे शेयर जरुर करें।

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