इस लेख में हमने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई पर निबंध तथा कहानी (Essay and Story of Rani Laxmi Bai in Hindi) को सरल रूप से लिखा है। अगर आप झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के ऊपर हिंदी में निबंध चाहते हैं तो यह लेख आपके लिए सहायक सिद्ध हो सकता है।
प्रस्तावना (रानी लक्ष्मीबाई पर निबंध व कहानी Essay and Story of Rani Laxmi Bai in Hindi)
भारत को स्वतंत्र कराने के लिए महान आत्माओं ने धरती पर जन्म लिया तथा अपने शौर्य व पराक्रम से जनमानस में भी वीरता का संचार किया। झांसी की रानी ऐसे ही महान आत्माओं में से एक है जिन्होंने भारतीयों के खोए हुए स्वाभिमान को उठाने के प्रयास किए।
जहां स्त्रियों को सिर्फ पुरुषों की वसीयत समझा जाता था और उनका राजनीतिक योगदान न के बराबर होता था तब महारानी लक्ष्मी जी ने झांसी की बागडोर संभाल कर भारतीय रूढ़िवादी वर्ग के साथ ब्रिटिश हुकूमत की सोच को जोरदार धक्का मारा।
एक प्रमुख सेनानायक की बेटी और महाराजा की रानी होने के बावजूद भी इन्होंने सभी सुख-सुविधाओं को टक्कर मार अपने स्वाभिमान को अंग्रेजों के आगे गिरवी रखने के स्थान पर संघर्ष और बलिदान के मार्ग को चुना।
झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की कहानी Story of Rani Laxmi Bai in Hindi
झांसी की रानी के बचपन का समय तो बहुत ही अच्छा बीता लेकिन बड़े होते होते उनके जीवन में संघर्षों की भरमार हो गई।
गंगाधर राव और रानी अपने पुत्र की मृत्यु के शोक में डूब गए। दुख के कारण गंगाधर राव के दिल को बहुत ही ज्यादा गहरा आघात पहुंचा और उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया तथा वह बहुत ही जल्द चल बसे।
उस वक्त ऐसा नियम था कि जिस राजा की कोई संतान नहीं होगी वह राज्य ईस्ट इंडिया कंपनी के अंतर्गत आ जाएगा। जब रानी को इस बात की सूचना मिली तो उन्होंने एक दत्तक पुत्र लेने का निश्चय किया जिसका नाम दामोदर रखा।
लेकिन अंग्रेजी हुकूमत में बैठे लॉर्ड डलहौजी ने महारानी के दत्तक पुत्र दामोदर राव को झांसी का भावी राजा मानने से इनकार कर दिया और बहुत ही जल्द झांसी के महल को खाली करने का आदेश दिया।
महारानी ने इस अवसर का फायदा उठाया और विद्रोह की भावना को और भी ज्यादा भड़काने का काम किया। 1857 में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ पहला विद्रोह भड़काया गया जिसमें मेरठ और कानपुर पूर्ण स्वतंत्र हो गया।
अंग्रेजों के कमांडर ह्यूरोज ने अपनी सेना को संगठित करके विद्रोह को दबाने का ताना-बाना बुना लेकिन रानी लक्ष्मीबाई पहले से ही सतर्क थीं उन्होंने मानपुर की राजा मर्दन सिंह को इस युद्ध की सूचना दी और रानी की अगुवाई में ऐसा युद्ध होगा जिसमें अंग्रेजी सेना के छक्के छूट गए।
पहली बार अंग्रेजी हुकूमत में डर का माहौल बन चुका था और अंग्रेजों को रानी लक्ष्मीबाई की बुद्धि और शक्ति का अंदाजा हो चुका था। इसके कारण रानी लक्ष्मीबाई को हराने के लिए उन्हें और भी ज्यादा सेना और रणनीति की जरूरत पड़ने लगी थी।
जन्म Birth of Laxmi Bai in Hindi
रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 13 नवंबर सन 1835 ईस्वी को काशी वर्तमान बनारस में हुआ था। इनका वास्तविक नाम मनु बाई था जिसके कारण इनका परिवार इन्हें प्यार से मनु और छबीली कह कर पुकारते थे।
इनके पिता का नाम मोरोपंत और माता का नाम भागीरथी बाई था। इनका परिवार महाराष्ट्र का निवासी था तथा लक्ष्मीबाई का पालन पोषण बिठूर में हुआ था।
प्रारंभिक जीवन Early life of Laxmi Bai in Hindi
बेहद कम उम्र में इनकी माता भागीरथी बाई का देहांत हो गया जिसके कारण मोरोपंत जी ने इनका पालन पोषण किया। इन्हें बचपन से ही पुरुषों की बराबरी करना उनके साथ खेलना कूदना, तलवारबाजी और घुड़सवारी करना बेहद ही पसंद था।
बाजीराव पेशवा रानी लक्ष्मीबाई को आजादी के किस्से और रामायण महाभारत वह पुराणों की कहानियां सुनाया करते थे जिसके कारण इनके चरित्र में भी वीर पुरुषों की तरह शौर्य के गुण विकसित हो गए थे।
जिस बचपन में खिलौनों से खेलना और घूमना बच्चों का मनपसंद काम होता है उस समय लक्ष्मीबाई युद्ध के हथियारों से खेलना पसंद करने लगी थी। शस्त्रागार में जाकर कई घंटों तक हथियारों को देखना और उन्हें चलाना सीखना उनके पसंदीदा कामों में से एक था।
एक बार बचपन में मनु ने बाजीराव पेशवा के बेटे नानासाहेब पेशवा को दौड़ते हुए घोड़े के पैरों के नीचे कुचलने से बचाया था। उनकी इस बहादुरी को देख कर लोगों ने उनके हिम्मत की बड़ी सराहना की थी।
उस वक्त पिस्तौल सिर्फ राजा महाराजाओं के पास हुआ करती थी और लक्ष्मीबाई ने बचपन में ही पेशवा बाजीराव के दत्तक पुत्र से पिस्तौल चलाना भी सीख लिया था।सिर्फ यही नहीं उन्होंने बचपन में ही बरछी, भाला, ढाल, कृपाण और कटारी चलाना भी सीख लिया था।
सिर्फ शस्त्र ही नहीं बल्कि मराठा ब्राह्मण परिवार से होने के कारण लक्ष्मीबाई को शास्त्रों का ज्ञान भी भली-भांति था।
बचपन में ही इनके अंदर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बहुत ही नफरत पैदा हो गई थी इसके कारण इन्होंने कई बार अंग्रेजी सैनिकों पर छुपकर वार भी किया था।
सन 1857 में रानी लक्ष्मीबाई का योगदान Contribution of Rani Laxmi Bai in 1857 in Hindi
27 फरवरी सन 1854 को दत्तक पुत्र पर बनाए गए नए नियम के कारण भारत के राजा रजवाड़ों में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ द्वेष उत्पन्न हो चुका था। वहीं दूसरी ओर मंगल पांडे और उनके साथियों ने मिलकर अंग्रेजी हुकूमत की रातों की नींद हराम करके रखी थी।
अंग्रेजों के राजनीतिक दांवपेच के कारण 7 मार्च 1854 को रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों के पेंशन को अस्वीकार कर दीव नगर के राजमहल में निवास करने लगी। लेकिन उनके अंदर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ एक आग की ज्वाला लगातार धधकती रही।
नवाब वाजिद अली शाह की बेगम हजरत महल और अंतिम मुगल सम्राट की बेगम जीनत महल तथा बहादुर शाह और अन्य लोगों ने महारानी लक्ष्मीबाई को सहयोग देने का आश्वासन दिया। जिसके बाद 31 मई सन 1857 क्रांति दिवस के रूप में निश्चित किया गया।
अंग्रेजों से सीधी लड़ाई में वे अपने दत्तक पुत्र दामोदर राव को पीठ पर बांधकर अंग्रेजों से लोहा लेतीं रहीं। लेकिन हथियारों और सैनिकों के खत्म हो जाने पर वह बुरी तरह से घायल भी हुई जिसमें उनका घोड़ा वीरगति को प्राप्त हुआ।
दूसरी ओर तात्या टोपे और अन्य राजाओं ने मिलकर ग्वालियर पर आक्रमण किया और वहां से अंग्रेजों को खदेड़ दिया। लेकिन बहुत ही जल्द ब्रिटिश सेनापति ह्युरोज ने फिर से आक्रमण कर ग्वालियर को ब्रिटिश कब्जे के अधीन लाया।
रानी लक्ष्मीबाई की निजी जीवन Personal life of Rani Laxmi Bai in Hindi
सन् 1838 में गंगाधर राव को झांसी का राजा घोषित किया गया जिसका विवाह लक्ष्मीबाई रानी मनु से तय हुआ।
पुत्र के देहांत हो जाने पर गंगाधर राव दुख के कारण चल बसे लेकिन महारानी ने अपना विवेक नहीं खोया और झांसी के लोगों के जीवन को गुलामी से बचाने के लिए उन्होंने एक दत्तक पुत्र लिया।
लेकिन रानी लक्ष्मीबाई ने एक भी पल ऐशोआराम में बिताए बिना स्वराज के लिए लड़ती रहीं और उन्हें प्रेरणा मानकर आज़ादी के कितने ही परवानों ने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए।
झांसी की रानी लक्ष्मीबाई अपने बचपन में बहुत ही सुंदर थी जिसका वर्णन कई लेखकों और उस वक्त के वकीलों ने अपनी पुस्तकों में लिखा है।
रानी लक्ष्मीबाई पर 10 लाइन Best 10 Lines on Rani Laxmi Bai in Hindi
- रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 13 नवंबर सन 1835 ईस्वी को काशी वर्तमान बनारस में हुआ था।
- इनका परिवार इन्हें प्यार से मनु और छबीली कह कर पुकारते थे।
- इनके पिता का नाम मोरोपंत और माता का नाम भागीरथी बाई था।
- बेहद कम उम्र में इनकी माता भागीरथी बाई का देहांत हो गया जिसके कारण मोरोपंत जी ने इनका पालन पोषण किया।
- एक बार बचपन में मनु ने बाजीराव पेशवा के बेटे नानासाहेब पेशवा को दौड़ते हुए घोड़े के पैरों के नीचे कुचलने से बचाया था।
- क्ष्मीबाई ने बचपन में ही पेशवा बाजीराव के दत्तक पुत्र से पिस्तौल चलाना भी सीख लिया था।
- ब्राह्मण परिवार से होने के कारण रानी लक्ष्मीबाई को शास्त्रों का ज्ञान भी भली-भांति था।
- सन् 1838 में गंगाधर राव को झांसी का राजा घोषित किया गया जिसका विवाह लक्ष्मीबाई से हुआ।
- पुत्र के देहांत हो जाने पर गंगाधर राव दुख के कारण चल बसे।
- हथियारों और सैनिकों के खत्म हो जाने पर वह बुरी तरह से घायल भी हुई जिसमें उनका घोड़ा वीरगति को प्राप्त हुआ।
रानी लक्ष्मीबाई की मृत्यु Rani Laxmi Bai Death in Hindi
अंग्रेजी हुकूमत से लोहा लेते लेते आखिरकार रानी लक्ष्मीबाई घड़ी आ ही गई जब सैनिकों और गोला-बारूद की कमी ने उन्हें अंग्रेजों के सामने कमजोर करना शुरू कर दिया।
18 जून सन् 1858 को ग्वालियर का अंतिम युद्ध हुआ जब उनका शरीर अंग्रेजों से लड़ते लड़ते पूरी तरह से लहूलुहान हो चुका था आंखें डगमगाने लगी थी तब उन्होंने युद्ध में अपने जीवन की आखरी आहुति देकर जनसमूह को स्वतंत्रता के लिए बलिदान का संदेश दिया।
निष्कर्ष Conclusion
इस लेख में आपने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई पर निबंध (Essay and Story of Rani Laxmi Bai in Hindi) को पढ़ा। आशा है आपको यह निबंध सरल और आकर्षक लगा हो। अगर यह लेख आपको पसंद आया हो तो इसे शेयर जरूर करें।