इस लेख में हमने 30 बेस्ट कबीर के दोहे हिन्दी अर्थ सहित (Kabir Ke Dohe with Hindi Meaning) प्रकाशित किया है। यह कबीर दास जी के पद या भजन ज्ञानवर्धक हैं।
कबीर दास का परिचय Introduction
कबीरदास जी एक बहुत बड़े आध्यात्मिक व्यक्ति थे उनके प्रभावशाली व्यक्तित्व के कारण उन्हें पूरे दुनिया में प्रसिद्धि प्राप्त हुई। कबीर जी हमेशा जीवन की कर्म में विश्वास रखते थे।
- जन्म- विक्रमी संवत 20 मई 1499 ई. वाराणसी
- कार्य- भक्ति कवि, सुत कातकर कपड़ा बुनाई
- राष्ट्रीयता- भारतीय
- साहित्यिक कार्य- सामाजिक और आध्यात्मिक विषय के साथ-साथ भक्ति आंदोलन
- मृत्यु – विक्रमी संवत 1518 ई. मघर
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आईये आपको बताते हैं – कबीर के दोहे हिन्दी अर्थ सहित Kabir Ke Dohe with Hindi Meaning
30+ कबीर दास जी के दोहे (भजन) हिन्दी अर्थ सहित Kabir Ke Dohe in Hindi
1. गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागू पाय ।
बलिहारी गुरु आपनो, जिन गोविंद दियो बताय ।। – Kabir Ke Dohe
अर्थ- कबीर दास जी इस दोहे में यह कह रहे हैं की गुरु और गोविंद (भगवान )दोनों एक साथ खड़े हैं इस स्थिति में हमें किस को प्रणाम करना चाहिए। गुरु को अथवा गोविंद को? ऐसी स्थिति में हमें गुरु का चरण स्पर्श करना चाहिए क्योंकि गुरु की कृपा रूपी प्रसाद से हम गोविंद का दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त होता है इस दोहे में कबीर दास जी ने गुरु की महत्ता को बताया है तथा गुरु को एक महान दर्जा दिया है।
2. सतगुरु की महिमा अनंत ,अनंत किया उपकार।
लोचन अनंत उघाडिया, अनंत दिखावणहार॥ – कबीर के दोहे
अर्थ- इस दोहे में कबीर दास जी ने गुरु की अनंत महिमा का वर्णन किया है। कबीर दास जी गुरु की महिमा बताते हुए कहते हैं कि सतगुरु की महिमा का कोई अंत नहीं है, यह अनंत है। गुरु के द्वारा किए गए उपकार भी असीम है क्योंकि इन्होंने अपने ज्ञान रूपी सद उपदेंशों से मेरी आंखों को खोल दिया अर्थात मेरी आंखों से भ्रम के परदे को हटा दिया। इसी प्रकार से मुझे गुरु की कृपा से भगवान का दर्शन हो गया।
3. ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोइ।
आपन तन शीतल करें, औरन को सुख होइ।। – Kabir Ke Dohe
अर्थ- संत कबीर दास जी ने मनुष्य की वाणी कैसी होनी चाहिए तथा उसका क्या प्रभाव पड़ेगा इस पर इस दोहे में बात कही है। कबीर दास जी मानव को संबोधित करते हुए कहते हैं कि हे मनुष्य तुम्हें विनम्र मधुर वाणी का प्रयोग करना चाहिए जिससे स्वयं को भी अच्छा लगे तथा दूसरे को भी सुख प्राप्त हो। साथ ही मन की कड़वाहट भी नष्ट हो जाएगी।
4. कस्तूरी कुण्डल बसै, मृग ढूंढे बन माहि।
ऐसे घट घट राम है, दुनिया जानै नाहिं।। – कबीर के दोहे
अर्थ- कबीर दास जी कहते हैं कि जिस प्रकार कर तू रिलीज अपनी धागे में इसकी कस्तूरी को नहीं जान पाता। उसके खुशबू से व्याकुल होकर उसे पाने के लिए वन में इधर-उधर भटकता है। धर्म के कारण वह अमरीश यह नहीं जान पाता है कि या सुगन उसके स्वयं के शरीर में बसी हुई है।
ठीक उसी प्रकार यह सत्य हम पर भी लागू होता है, हम परमात्मा की खोज में इधर-उधर देवालय में, वनों में तीर्थ स्थल में भटकते रहते हैं, जबकि परमात्मा हमारे ही आत्मा में समाया हुआ है। हम सब धाम के कारण इस सात से परिचित हैं और इश्वर की खोज बाहर की ओर करते हैं सर्वथा निरर्थक प्रयत्न करते रहते हैं।
कबीर दास जी इस दोहे के माध्यम से यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि मनुष्य के हृदय में ईश्वर का वास है लेकिन मनुष्य भ्रमवश उसे देख नहीं पाता और व्यर्थ आडंबरओ के चक्कर में फँस जाता है। अंततः इन नंबरों से मुक्त होने का संकेत दिया है।
5. माला फेरत जुग गया, मिटा न मन का फेर ।
करका मनका डारि कै ,मन का मनका फेर।। – Kabir Ke Dohe
अर्थ- इस दोहे के माध्यम से कबीर दास जी ने बाहर से माला जपने का विरोध करते हुए मन को बदलने की बात कही है। मन का परिवर्तन होना ही सच्ची साधना है।
कबीर दास जी कहते हैं माला जपने वाले सांसारिक लोग, तुम्हें इस कष्ट आरोपी माला को जपते हुए युग बीत गए परंतु तुम्हारे मन में भाव के परिवर्तन नहीं आया। मंकी विकार यथावत बने रहे तो ऐसी माला जपने से क्या लाभ? इसीलिए तुम अपने हाथों में धारण किए हुए माला को फेंककर अपने मन रूपी दानों को बदलो।
6. सॉंच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।
जाके हिरदै सॉंच है, ताके हिरदै आप।
अर्थ- कबीर दास जीने इस दोहे के माध्यम से सत्य की महत्ता को बताया है। कबीरदास जी कहते हैं कि सत्य के बराबर को तपस्या नहीं है और झूठ के समान कोई पाप नहीं है। जिसके हृदय में सत्य है उसके हृदय में ईश्वर का वास होता है।
7. निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय,
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय। – Kabir Ke Dohe
अर्थ- इस दोहे में कबीर दास जी ने निंदा करने वाले के महत्व को बताया है। कबीरदास जी कहते हैं कि निंदा करने वाले व्यक्ति को जितना संभव हो सके उसे अपने घर आंगन में कुटिया बनाकर रखना चाहिए, ताकि वह पास में रहकर अपनी आलोचना करते रहे इससे सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि बिना पानी और साबुन की सहायता से ही हमारे दोस्त धूल जाएंगे और हमारा स्वभाव तथा आचरण निर्मल हो जाएगा।
8. काल करे सो आज कर, आज करे सो अब।
पल में प्रलय होएगी, बहुरि करेगो कब।।
अर्थ- कबीर दास जी ने इस दोहे के माध्यम से हमें समय की महत्ता को बताया है और कहां है हे मनुष्य इस संसार में जो कार्य कल करना है, इसे आज ही कर लो। आज के जाने वाले कार्य को इसी समय कर लो। किसी छण भी मृत्यु हो सकती है फिर तुम ईश्वर का स्मरण कब करोगे।
9. मक्खी गुड में गडी रहे, पंख रहे लिपटाये,
हाथ मले और सिर ढूंढे, लालच बुरी बलाये। – Kabir Ke Dohe
अर्थ- इस दोहे के माध्यम से कबीर दास जी ने लालच को एक बुरी बला बताइए है। कबीरदास जी कहते हैं कि मिठाई खाने के लालच में मक्खी गुण पर रहती है पर उसे यह पता नहीं रहता की गुड गिला है और वह जैसे ही उसके पास जाती है उसके पंख चिपक जाते हैं अनेक प्रयास करने पर भी वह गुण पर से उड़ नहीं पाती है क्योंकि लालच बुरी बला है। उसी प्रकार मनुष्य भी ईश्वर की दर्शन पानी के लिए अनेक धार्मिक आडंबर में फंस जाता है वह मक्खी की तरह संसार के माया मोह के बंधनों में फस कर रह जाता है।
10. यह ऐसा संसार है जैसा सेंबल फूल।
दिन दस के व्यौछार कौ झूठै रंगि न भूलि।।
अर्थ- इस दोहे के माध्यम से कबीर दास जी ने इस संसार को क्षणिक व शीघ्र नष्ट होने वाला कहा है। कबीरदास जी कहते हैं कि यह संसार सेमर के फूल की तरह देखने में तो सुंदर है परंतु उसका अस्तित्व नहीं है। जिस तरह से सैमर का फूल देखते-देखते नष्ट हो जाता है उसी तरह यह संसार भी सीमित दिनों का है, यहां की सभी वस्तुएं नश्वर है अर्थात सब झूठा । इसमें लुफ्त मत होइए।
11. बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर ।
पंथी को छाया नहीं ,फल लागे अति दूर।। – कबीर के दोहे
अर्थ- कबीरदास जी कहते हैं कि खजूर के पेड़ के भांति बड़े होने का कोई मतलब नहीं है क्योंकि ना तो इससे यात्रियों को छाया मिलती है और ना ही आसानी से फल तोड़ा जाता है। अर्थात बड़प्पन के प्रदर्शन मात्र से किसी का कोई लाभ नहीं होता।
12. जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होय।
यह आपा तो डाल दे, दया करे सब कोय।। – Kabir Ke Dohe
अर्थ- कबीरदास जी कहते हैं कि यदि हमारा मन पवित्र और शीतल है तो इस संसार में हमारा कोई भी बैरी नहीं हो सकता। यदि हम हमारा अहंकार त्याग दे तो हर कोई हम पर दया करने को तैयार हो जाता है।
13. साईं इतना दीजिए, जामे कुटुम समाय ।
मैं भी भूखा ना रहूं, साधु न भूखा जाए।।
अर्थ- कबीरदास जी कहते हैं कि हे भगवान हे परमात्मा मुझे इतना दो कि जिस में मेरा भी गुजारा चल जाए अर्थात मैं भी भूखा ना रहूं और मेरे घर जो भी अतिथि या साधु आए वह मेरे घर से भूखा ना जाए।
14. अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप।
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।।
अर्थ- कबीरदास जी कहते हैं कि अधिक बोलना भी अच्छा नहीं है और नहीं जरूरत से ज्यादा चुप रहना। जैसे अधिक वर्षा अच्छी नहीं है और ना ही अधिक धूप। कबीरदास जी कहना चाहते हैं कि हमें लिमिट के हिसाब से ही बोलना चाहिए।
15. धीरे धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय ।
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय।। – Kabir Ke Dohe
अर्थ- कबीरदास जी कहते हैं कि हे मन धीरज रखने से सब कुछ होता है, अगर कोई माली किसी पेड़ को शो घड़े पानी से सींचने लगी तब भी ऋतु आने पर ही फल लगेगा अर्थात हमें धीरज बनाए रखना चाहिए क्योंकि हर चीज का कोई समय होता है। हमें जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए।
16. बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो मन खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।। – कबीर के दोहे
अर्थ- कबीरदास जी कहते हैं कि जब मैं बुराई खोजने चला तो मुझे कोई भी बुरा नहीं मिला लेकिन जब मैंने अपने मन के अंदर झांका तो मुझसे बुरा कोई नहीं हैं। अर्थात हमें दूसरों पर बुराइयां नहीं ढूंढने चाहिए क्योंकि हम भी बुरे होते हैं।
17. दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोई।
जो सुख में सुमिरन करे ,तो दुख काहे को होय।।
अर्थ- कबीरदास जी कहते हैं कि दुख के समय यदि भगवान को याद किया जाता है और सुख के समय भगवान को याद नहीं किया जाता यदि हम सुख के समय भी भगवान को याद करें तो हमें दुख की प्राप्ति नहीं होगी।
18. कबीरा खड़ा बाजार में, मांगे सबकी खैर ।
ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर।।
अर्थ- कबीरदास जी कहते हैं कि इस संसार में आकर कबीरा अपने जीवन में बस यही चाहते थे कि सबका भला हो और संसार में किसी से दोस्ती ना हो तो दुश्मनी भी ना हो।
19. जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ।
मैं बापुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।। – Kabir Ke Dohe
अर्थ- कबीरदास जी कहते हैं कि जो लोग प्रयत्न करते हैं वह कुछ ना कुछ पा ही लेते हैं जैसे कुछ मेहनत करने वाला गोताखोर गहरे पानी में जाकर कुछ ना कुछ लेकर ही आता है। लेकिन कुछ बेचारे ऐस भी होते हैं जो डूबने के भय से पानी के किनारे बैठे ही रह जाते हैं और कुछ नहीं पाते हैं। अर्थात कबीरदास जी कहते हैं कि हमें मेहनत करने से नहीं डरना चाहिए।
20. गुरु गोविंद दोउ एक हैं, दूजा सब आकार।
आपा मिटैं हरि भजै,तब पावै दीदार।।
अर्थ- कबीरदास जी कहते हैं कि गुरु और गोविंद दोनों एक हैं उनमें कोई अंतर नहीं है ।उनके नामों से भले ही वह अलग अलग लगते हैं पर अंदर से वह एक है। मन से ,मैं ,की भावना को निकाल कर हरि का नाम भजन एसे मन के सारे दोष दूर होते हैं ,और तब हरि का दर्शन हो जाता है।
21. गुरु बिना ज्ञान न उपजै, गुरु बिना मिले ना मोष।
गुरु बिन लखै न सत्य को, गुरु बिन मिटैय न दोष।। – Kabir Das Ke Dohe
अर्थ- कबीरदास जी कहते हैं कि गुरु के बिना हमें ज्ञान की प्राप्ति नहीं होती और ना ही हमें गुरु के बिना मोक्ष मिलता है और ना गुरु के बिना हमें सत्य की पहचान नहीं होती और नहीं गुरु के बिना मन का भ्रम दूर होता है।
22. गुरु समान दाता नहीं ,याचक सीष समान ।
तीन लोक की संपादा, सो गुरु दिन ही दान।।
अर्थ- किस दोहे के माध्यम से कबीर दास जी ने गुरु की महत्ता को बताते हुए कहा है कि गुरु के समान कोई दाता नहीं और ना ही शिष्य के समान कोई मांगने वाला नहीं। ऐसा होते हैं कि तीनों लोग का ज्ञान शिष्य को एक इशारे पर ही दे देते हैं।
23. गुरु सो ज्ञान जु लीजिए, सीस दीजिए दान।
बहुत भोंदू वही गए, राखी जीव अभिमान।। – कबीर के दोहे
अर्थ- कबीरदास जी कहते हैं कि गुरु से ज्ञान लेते समय हमें अपना सिर उनके चरणों में झुका लेना चाहिए। अकड़ दिखाने वाले बहुत से अज्ञानी बह गए और उनका कभी भी कल्याण ना हो सका। कबीर दास जी ने इस दोहे के माध्यम से हमें यह शिक्षा दी है कि हमें कभी भी गुरु के सामने अपनी अकड़ नहीं दिखानी चाहिए।
24. गुरु पारस को अंतरो, जानत है सब संत।
वह लोहा कंचन करें, यह करी लिए महंत।। – Kabir Ke Dohe
अर्थ- कबीर दास जी ने कहां है कि सभी ज्ञानी व्यक्ति गुरु और पारस पत्थर का अर्थ को समझते हैं। पारस पत्थर लोहा को सोना बना देता है और गुरु का ज्ञान शिष्य प्राप्त कर एक महान व्यक्ति बनता है।
25. गुरु शरणागति छाड़ि के, करें भरोसा और।
सुख संपत्ति को कह चली,नहीं नरक मैं ठैर ।
अर्थ- कबीर दास जी कहते हैं कि जो व्यक्ति गुरु का साथ छोड़कर किसी और व्यक्ति पर भरोसा करता है उसको सुख शांति तो नहीं मिलता और ना ही नर्क का द्वार भी उसके लिए बंद रहता है
26. गुरु कुम्हार शिष्य कुंभ है,गढ़ी गढ़ी काढै खोट।
अंतर हाथ सहार दे, बाहर बाहै चोट ।। – Kabir Ke Dohe
अर्थ- कबीर दास जी ने इस दोहे में गुरु को कुमार तथा शिष्य को एक कच्चा घड़ा बताया है जिस तरीके से कुम्हार कच्चे घड़े को पीटकर एक मजबूत घड़ा बनाता है उसी तरह से गुरु भी सिस्टर को पीटकर एक अच्छा व्यक्ति बनाता है।
27. गुरु को सिर पर रखिए ,चलिए आज्ञा माही।
कहे कबीर दा दास को, तीन लोक में नाही।।
अर्थ- कबीरदास जी कहते हैं कि गुरु हमारे सर के ताज होते हैं। जो भी गुरु की आज्ञा का पालन करते हैं उन्हें तीनों लोगों में किसी भी प्रकार का भय नहीं होता है।
28. कबीर हरि के रूठते, गुरु की शरण में जाएं ।
कहे कबीर गुरु रूठते , हरि नहीं होत सहाय।। – कबीर के दोहे
अर्थ- कबीरदास जी कहते हैं कि यदि हरी रूठ जाते हैं तो हम गुरु के शरण में जाकर उन्हें मना लेते हैं लेकिन यदि गुरु रूठ जाते हैं तो हम हरि के शरण में भी जाकर उन्हें मना नहीं पाते हैं इसलिए हमें सदा गुरु को प्रसन्न रखना चाहिए।
29. कबीर ते नर अंध है ,गुरु को कहते और।
हरि के रुठै ठौर हैं, गुरु रूठे नहीं ठौर।। – Kabir Ke Dohe
अर्थ- कबीरदास जी कहते हैं कि वे लोग अंधे हैं जो गुरु को कोई महत्व नहीं देते हैं। हरि के रूठने पर स्थान मिल सकता है पर गुरु के रूठने से हमें कोई भी स्थान नहीं मिल सकता।
30. भक्ति पदारथ तब मिले, जब गुरु होय सहाय।
प्रेम प्रीति की भक्ति जो, पुराण भाग मिलाएं।।
अर्थ- कबीरदास जी कहते हैं कि हमें ईश्वर की प्राप्ति तब होती है जब गुरु हमारी सहायता करते हैं। गुरु की कृपा बिना भक्ति के मार्ग को प्राप्त करना बिल्कुल भी असंभव है।
31. तिमिर गया रवि देखते, कुमति गई गुरु ज्ञान।
सुमति गई अति लोभते, भक्ति गई अभिमान।।
अर्थ- कबीरदास जी कहते हैं कि जब सूर्य को हम देखते हैं तो अंधकार दूर हो जाता है। और गुरु के ज्ञान से दुर्बुद्धि दूर हो जाता है। कबीरदास जी कहते हैं कि यदि हम अत्यधिक लोभ करते हैं तो हमारी समृद्धि चली जाती है और अभिमान से भक्ति का नाश हो जाता है इसलिए हमें कभी भी लोभ नहीं करना चाहिए।
32. भाव बिना नहीं भक्त ,भक्ति बिना नहीं भाव।
भक्ति भाव एक रूप है, दोउ एक स्वभाव।। – कबीर के दोहे
अर्थ- कबीरदास जी कहते हैं कि बिना भाव के संसार में किसी को भक्ति नहीं मिलती और ना ही भक्ति के बिना भाव मिलता है भक्ति और भाव दोनों एक दूसरे के पूरक है। और दोनों एक ही स्वभाव जैसे हैं।
33. कामी क्रोधी लालची, इनमें भक्ति ना होए।
भक्ति करे कोई सूरमा, जाति वरन कुल खोय।।
अर्थ- कबीरदास जी कहते हैं कि कामी क्रोधी लालची प्रवृत्ति के लोग कभी भी भक्ति नहीं कर सकते भक्ति तो केवल वही कर सकता है जो अपने जाति, परिवार, खानदान, तथा अहंकार को त्याग दें। भक्ति करना सबके बस की बात नहीं होती।
34. भक्ति भक्ति सब कोई कहै, भक्ति ना जाने भेद।
पुराण भक्ति जब मिले, कृपा करो गुरुदेव।। – Kabir Ke Dohe
अर्थ- कबीरदास जी कहते हैं कि भक्ति भक्ति तो सब कोई कहते हैं पर भक्ति का अर्थ कोई नहीं जानता। हमें पूर्ण रूप से भक्ति की प्राप्ति तभी होती है जब हमारे साथ गुरुदेव की कृपा होती है।
आशा करते हैं आपको यह कबीर के दोहे हिन्दी अर्थ सहित Kabir Ke Dohe with Hindi Meaning पसंद आये होंगे।
Very good….like it